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मदखली भाईयों को उलेमा की तरफ से दावत ए इस्लाह


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अस्सलाम अलैयकुम..

अल्हम्दुलिल्लाह वस्सलातो वस्सलाम अला रसूल अल्लाह।

अगर आप इस फिल्ड में इल्म रखते है तो आपको पता होगा कि बदकिस्मती से हमारे सलफ़ के मन्हज के मानने वालों में भी फिर्कें बन रहे है कुछ सालों से और इस बात का साफ तौर पर शैख बद्र इब्ने अली इब्ने तामी अल-उतैबी ने अपनी किताब 'Have mercy upon Salafiyyah' के पेज नम्बर 11 में ज़िक्र किया है, यह शैख बिन बाज़ के सिनियर स्टुडेंट है और मरकज़ अल-दावाह, ताईफ, सऊदी अरब के हेड है।

तो सलफी जमाअत मेंसे एक जमाअत है जिसको आम तौर पर मदखिली सलफी कहा जाता है। कुछ लोग इन लोगों को और नाम भी देते है, जैसे कि शैख आसिम इब्ने हकीम इन लोगों को 'Neo Salafi' के नाम से ज़िक्र करना पसंद करते है।

तो मैं अब फर्क बता दुं ताकी कोई शक़ व शुबहा ना बाकी रहे। एक तो हमारे सलफ़ी भाई है जो कि आम तौर पर माशा अल्लाह बहुत मुख्लिस होते है बिल्कुल सहाबा और सलफ़ के तरिके पर ज़िन्दगी बसर करने की कोशिश करते है अलहम्दुलिल्लाह और हमलोगों का और इनलोगों का मन्हज एक ही है कि कुरआन और सुन्नत को सलफ़ के फ़हम से समझना है।

और जो मदखिली लोग है इनलोगों का रवइया काफी अलग है। मैं अपने कमेन्ट्स की बजाए उलमा ए हक़ के कमेन्ट्स बताउंगा इंशा अल्लाह।

तो यह जो मदखिली जमाअत है इनलोगों ने इस दर्जे के अमल किये है कि हमारे मोहतरम उस्ताद, शैख ज़ुबैर अली ज़ई, शैख फ़ौज़ान, शैख इब्ने उसैमीन, शैख आसिम अल हक़ीम, वग़ैराह को खुद मैदान में आकर इनका रद्द करना पड़ा उन्हें कि जो यह लोग जिस तरह की हरकत करते वह सलफ़ का मन्हज बिल्कुल नहीं है बल्कि इन्होंने सलफ़ीयों का रास्ता ही छोड़ दिया है। और इन लोगों की करतुत की वजह से हमारे सलफ़ी मन्हज को नुकसार पहुंच रहा है।

फतवे तो फतवे, हमारे उलमाए किराम को इन लोगों के खिलाफ किताबें तक लिखनी पड़ी इन लोगों की हरकतों की वजह से, कुछ मश्हूर किताबों के यह नाम है:

1. सलफ़ीयत पर रहम करें - शैख बद्र इब्ने अली इब्ने तामी अल-अतयबी 
2. सुन्नत वाले लोग - शैख अब्दुल मुहसीन बिन हमाद अल-अब्बाद
3. यह मन्हज ए सलफ़ नहीं - शैख मुहम्मद बज़मूल।

आपको यह तीनों किताबें इस लिंक से डाउनलोड कर सकते है: https://goo.gl/1PsJUA

और इनके खिलाफ जो हमारे उलमा के सख्त फतवे है मैं आपसे वह भी शैयर करूंगा इंशा अल्लाह। लेकिन उससे पहले आपके ज़हन में यह सवाल आ रहा होगा कि हम उन सलफ़ीयों को पहचाने कैसे क्योंकि अक्सर वह खुद को सिर्फ सलफ़ी ही कहते है क्योंकि उनको पता है कि उनका रद्द किया हुआ है हमार उलमा ए किराम ने। तो जो इन किताबों में उनकी निशानियां बतायी गई है मैं उस पर रोशनी डाल कर आपको फर्क़ वाज़ेह करूंगा इंशा अल्लाह।

पहली बात: जो सलफ़ी होगें उनको आप इस मशरूफियात में पायेंगे कि वह लोगों को कुरआन और सुन्नत की तरफ और तौहीद की तरफ बुलाने में मशरूफ रहेंगें, यह लोग दुसरों पर आम तौर पर तन्क़ीद नहीं करते। जबकि मदखिली सलफ़ी होंगे वह लोग दिन भर बस अहले इल्म की ग़लतीयां निकालने और उनपर हमला करने में मशरूफ रहते है।

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह कहते है: 

“तालिब ए इल्म इस तरह फुला फुला लोगों पर हमला करते हुए खुद को मशरूफ नहीं करते। लेकिन वह अच्छी तरह से इस्लाह और खैर की तरफ लोगों को बुलाने में मशरूफ रहते है।”

सोर्स: https://goo.gl/EVca5P

दुसरी बात: जो सलफ़ी होते है वह अहले सुन्नत के लोगों की ग़लतीयों से Deal करना और अहले बिदअत के लोगों की ग़लती से Deal करने में फर्क करते है। यानी जो शख्स शिर्क और बिदअत करता है और जो तौहीद परस्त है जो बिदअत नहीं कारता इन दोनों से इस्लाह करने के रवइयों में फर्क करते है। इसलिए आपको यह पता होगा कि डाॅ. ज़ाकिर, डाॅ. इसरार वग़ैरह की ग़लतीयों पर हमारे उलमा इतने सख्त तब्सीराह नहीं करते और अक्सर उलेमा तो इनकी ग़लतीयों पर कुछ कमेन्ट ही नहीं करते क्योंकि उन्हें पता है कि यह अहले इल्म शिर्क और बिदअत में मुलव्विस नहीं है हा इज्तिहादी अगर कोई ग़लती हो जाए तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है किसी से भी हो सकती है।
लेकिन जो मदखिली होंगे वह इन अहले इल्म और इनके स्टुडेंट्स को Zero से multiply कर देंगे जैसे वह शिर्क और बिदअत में डुबे हुए लोगों के साथ करते है, और उनपर गुमराह, मन्हजलेस, बिदअती, पता नहीं क्या क्या कहेंगे।

शैख बज़मूल फरमाते है: यह मन्हज ए सलफ में से नहीं कि अहले सुन्नत के लोगों की ग़लतीयों से वैसे ही Deal किया जाये जेसे कि अहले बिदअत की ग़लतीयों से Deal किया जाता है। बेशक आदम की हर औलाद से ग़लती होती है, इसलिए उन लोगों का मन्हज देखा जायेगा (कि वहअहले बिदअत है या अहले सुन्नत) और उसकी ग़लती पर उसी तरह डील किया जायेगा।

किताब - यह सलफ़ का मन्हज नहीं, पेज -3

तीसरी बात: मदखिली लोग, लोगों की ग़लती पर उन्हें नसीहत करने की बजाए यह उनकी ग़लती को लोगों में आम कर देते है और यह उन लोगों की ग़लती पर उन्हें समझाने की बजाए उन्हें बायकाॅट करना शुरू कर देते है कि इन्हें मत सुनों, इस वेब साइट से आगाह हो जाव, इनके पास बैठों मत, इनको पढ़ों मत वगैराह, 

जबकि सलफ़ी होते है वह इन सब चीज़ों में नहीं पढ़ते है क्योंकि वह जानते है कि कुरआन में अल्लाह पाक ने बस हमसे हक़ बात बताने की ज़िम्मेदारी डाली है ना कि लोगों को हिदायत देने की।

शैख फौज़ान कहते है: 

“और झगड़े को छोड़ दे, जो तालिब ए इल्मों के बीच हो गयी है, (एक दुसरे से) नफरत करना, लाअनत करना, लोगों को एक दुसरे के खिलाफ करना, जबतक कि वह उम्मत और तालिब ए इल्मों को आपस में बांट ना दे, (और उनका कहना कि): “इन इन लोगों से खबरदार हो जाओ! फुला के साथ बैठों मत! फुला और फुला को मत पढ़ों!” - इसकी इजाज़त नहीं है।

अगर फुला और फुला ने ग़लती की है, तो एक एक करके उन्हें नसीहत करे, जबकि इसकी (उनकी ग़लतीयों को) लोगों में फैला देना और उनके खिलाफ लोगों को आगाह करना जबकि वो आलीम है, या तालिब ए इल्म है, या कोई नेक शख्स है जिसने ग़लती की है, इसकी ज़रूरत नहीं है कि उन ग़लतीयों को लोगों में फैलाया जाए।

जो ज़रूरी है वह यह कि आप ईमानदारी से एक दुसरे को नसीहत करें, जो ज़रूरी है वह यह कि आप एक दुसरे से मुहब्बत करें, खास तौर पर तालिब ए ईल्म से, खास तौर पर उलमा से, उलमा की इज़्ज़त की जाए और ना कि उनकों एक दुसरे के खिलाफ किया जाए और ना ही उन लोगों से आगाह किया जाए, यह बहुत सी बुराई की वजह है, झगड़ा और नफरत की वजह हैा, फितना की वजह है - इनसब चीज़ों को (सहीह) रास्ते पर लाया जाए।”

सोर्स: https://youtu.be/LtG6F5mEPtM

तो यह बुनियादी तीन फर्क थे जिनके ज़रिए आप उन्हें पहचान सकते है। अब मैं इन मदखली हज़रात की एक बात और बताता हुं। यह लोग अहले ईल्म की ग़लती निकालने और उन्हें आउट आॅफ काॅन्टेक्स क़ोट करने में एक्सपर्ट होते है, चाहे वह शख्स कितना ही तौहीद परस्त और सहीह अक़ीदे का क्यों ना हो, बस अगर अपने इन मदखलियों से ज़रा सा कोई इख्तलाफ कर दिया तो यह आपको ना समझाऐंगे ना इस्लाह करेंगे। यह खामौशी से पहली आपकी छोटी-छोटी ग़लतीयां तलाश करेंगे, अगर ग़लती ना मिले तो यह आपकी बातों को ग़लत और आउट आॅफ काॅन्टेकस क़ोट कर के उन्हें जमा करेंगे और फिर यह इस चीज़ को लोगों में या अपनी वेबसाईट्स में फैला देंगे ताकी एक आम सलफ़ी भी कन्फ्यूस हो जाए कि यह बन्दा या यह अहले ईल्म तो कुरआन और सहीह हदीस से बात करता है, शिर्क और बिदअत के भी खिलाफ है, फिर ऐसा क्यों हुआ ?

और यह लोग दिन भर बैठ कर बस यही किया करते है, इनका मैन इस्लाम यही है। इन लोगों ने डाॅ. ज़ाकिर नाईक, डाॅ. इसरार, डाॅ फरहत हाशमी और यहां तक कि शैख ज़ुबैर अली ज़ई को भी नही बख्शा जो कि एक बहुत बड़े आलीम और मुहद्दीस है। अब आप खुद सोचे जब यह इतने बड़े आलीम को नहीं बख्शते तो यह हमारे और आप जैसे तालिब ए ईल्म को कैसे बख्श देंगे:

शैख ज़ुबैर अली ज़ई कहते है:

इंगलेण्ड वग़ैराह के तक़लीदी सलफ़ीयों ने किज़्ब (झुट) व इफ्तिरा (बोहतान लगाना) और तशद्दुद (एक्सट्रीम) की राह अपनाते हुए अहले हदीस उलमा व आवाम पर रद्द शुरू कर रखें है। ज़रा सी बात या इज्तहादी खता पर वह लोगों को सल्फीयत से बाहर निकाल देते है। इस तरह के लोग पुराने ज़माने में भी थे जिनके बारे में हाफिज़ ज़हबी लिखते है: 

“यह असहाब ए हदीस नहीं बल्कि फाजिर व जाहिल है। अल्लाह उनके शर को दुर करें।” 

(सियार आलाम अल-नुबला, 17/460)

उन्ही कज़्ज़बीन (Liars) में अबु खदिजा अब्दुल वाहिद बिन मुहम्मद आलम मीरपुरी, यासीर अहमद बिन खुशी मुहम्मद और अबु युसुफ अब्दुर्ररहमान हाफ़ीज़, तीनों कज़्ज़ाब व इफ्तरा (बोहतान लगाने) में बहुत मशहूर है।”

अल हदीस होजरो, सफ़ा 42.

इनका फितना शुरू में तो सिर्फ इंगलेण्ड वग़ैराह में था लेकिन कुछ सालों से यह हमारे sub-continent में इनका फितना काफी फैल गया है। आप देख सकते है कि शैख ज़ुबैर कितने सख्त अल्फाज़ में इन लोगों का रद्द कर रहे है। शैख ज़ुबैर की दुआ पर हम आमीन कहते है।

और इसी तरह से शैख फ़ौज़ान, शैख अब्दुल मुहसिन बिन आमाद अल अब्बाद, शैख आसिम अल हाकीम जैसे उलेमाओं ने इन लोगों का रद्द किया है। नीचे दिए गए 2 लिंक में आप इन उलेमा का रद्द पढ़ सकते है:

1. https://www.iqrakitab.com/2018/08/ye-salaf-ka-rasta-nahi.html
और आखिर में मैं अपने मोहतरम उस्ताद शैख इब्ने उसैमीन का फतवा पेश करना चाहुंगा जो कि उन्होंने मदखलियों के बारे में कहा है:

“हमारे इस दौर में कुछ लोग जिन्होंने सलफ़ीयाह का रास्ता अपनाया है उन लोगों ने हर उस शख्स को गुमराह कहना शुरू कर दिया जो उनसे इख्तलाफ करता है यहां तक कि अगर वह शख्स सहीह हो, और कुछ लोगों ने हिज़्ब का रास्ता अपनाया है जिस तरह दुसरे गिरोह ने अपनाया था जो अपने आप को मज़हब ए इस्लाम से होने का दावा करते है। यह कुछ ऐसा है ना-पसंदिदा है और जिनकी मन्ज़ुरी नहीं दी जा सकती, और उन लोगों से यह कहना चाहिए कि सलफ़ अस सालेह के तरीके को देखों, वह क्या किया करते थे ? उनके तरीके को देखों और कैसे वह खुले दिल के थे जब इख्तलाफ की सुरत आती थे जिसमें इज्तहाद जायज़ है (और इख्तलाफ काबिल ए कुबुल है)। वह बड़े मसाईल में भी इख्तलाफ करते थे, ईमान और अमल के मसाईल में। आपको कुछ चीज़े मिलेगी, जैसे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का अल्लाह को देखने पर इन्कार करना जबकि दुसरों ने कहा कि उन्होंने देखा है। आपने कुछ को यह कहते हुए देखा होगा कि क़यामत के दिन जो चीज़ तौली जाएगी वह है आमाल जबकि दुसरे लोग कहते थे कि वह तो आमाल की किताब है जो तौली जाऐंगी। आप उन्हें देखेंगे कि वह फिक़्ह के मुआमलों में भी काफी हद तक इख्तलाफ करते थे, जैसे निकाह, विरासत का हिस्सा, खरीद और फरोख्त और दुसरे मुआमलों में। लेकिन इसके बावजुद उन्होंने एक दुसरे को गुमराह नहीं कहा।

सलफियाह एक खास जमाअत के तौर पर जिसकी अलग खुसुसियात हो जिसमें लोग उन लोगों के सिवा सबको गुमराह कहे, इन लोगोंं का सलफियत से कुछ लेना देना नहीं है। जहां तक कि सलफिया जिसका मतलब सलफ की पैरवी करना ईमान में, कलिमात और आमाल में, इत्तिहाद, मुताबक़ात और शफ्क़त और मुहब्बत की तरफ बुलाना जैसा कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फारमाया: “मोमिन की मिसाल एक जिस्म में मुहब्बत, रहमत और शफ्कत की तरह है, जब कोई एक हिससे में तक़लीफ होती है तो फिर बाकी हिस्सा भी उसके साथ जागता है और बुखार में शामिल हो जाता है - यह असल सल्फियाह है।”

लिक़ाअत अल-बाब अल-मफतूह, 3/246.

और आखिर में, इन सब का मक़सद किसी की बुराई करना या किसी को सुनने से रोकना नहीं है। बल्कि जो लोग कन्फ्यु होते है उनकी हरकतों से उनकी  कन्फ्यु दुर करना है। और मैं उनलोगों की तरह यह भी नहीं कहुंगा कि इन लोगों को आप सुनना बंद कर दें या इन लोगों के लिए ग़लत ज़बान इस्तेमाल करें, बल्कि जब भी आपको ऐसे लोग मिले तो आप मुस्कुरा कर अच्छे अख्लाक़ से उन्हें कुरआन और सुन्नत की रोशनी में बताये कि यह जो अमल करते है यह सहाबा नहीं किया करते थे और इख्तलाफ की हालत में सलफ़ का रवैइया क्या हुआ करता था। और उन्हें ऊपर ज़िक्र करदा फतावा देकर समझाये कि उन्होंने कहां पर सलफ़ का रास्ता छोड़ दिया है, क्योंकि वह हमारे मुसलमान भाई है जिनको ग़लती लग गई है।

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