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माह ए सफर इस्लामी साल और हिजरी केलेन्डर का दुसरा महीना है, जिसके मुताअल्लिक बर्र-ए-सग़ीर के खुराफाती तबक़े ने मुख्तलिफ किस्म की बिदअतें, ग़लतफहमीयां और बदग़ुमानिया मुस्लिम समाज में फैला रखी है, इसे मन्हूस व ना-मुबारक समझना, आफत व मुसीबत का गेहवारा तसव्वुर करना, शर व फसाद का गन्जीना बतलाना और नुकसान व ज़र का महीना बावर कराना, कुछ नाम निहाद मुसलमानों की आदत बन चुकी है, हालांकि इस्लाम का बुनियादी अक़ीदा है कि इस पूरी कायनात का खालिक व मालिक और तमाम तसव्वुरात का मुख्तार-ए-कुल सिर्फ अल्लाह तआला है। तमाम नफ़ा व नुकसान का मालिक सिर्फ अल्लाह तआला है।
बाज़ लोग माह ए सफर के बारे में बहुतसी ग़लत फहमियों का शिकार, यह आर्टिकल इसी बात को वाज़ेह करने के लिए तैयार की जा रही है। माह ए सफर अल्लाह तआला के बनाए हुए महीनों में से एक महीना है। अल्लाह और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से इस महीने की ना कोई फज़ीलत बयान की गई है और ना ही कोई ऐसी बात जिसकी वजह से इस महीने में किसी भी हलाल और जायज़ काम को करने से रोका जाए। जो महीने फज़ीलत और हुरमत वाले है उनके बारे में अबु बकर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया,
“साल अपनी उसी हालत में पलट गया है जिसमें उस दिन था जब अल्लाह ने ज़मीन और आसमान बनाये थे, साल बारह (12) महीने का है जिनमें से चार हुरमत वाले है, तीन एक साथ है, ज़िलक़ाद, ज़िलहिज्जा, और मुहर्रम, मुज्र वाला रजब जमाद और शाबान के दर्मियान है।”
सहीह अल बुखारी, हदीस नं. 4662.
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने साल की बारह महीनों में से 4 के बारे में बताया ख्वाह चार महीने हुरमत वाले है यानी उन चार महीनें में लड़ाई और कत्ल नहीं करना चाहिए, इसके आलावा किसी भी माह की कोई और खुसुसियात बयान नहीं हुई है और ना अल्लाह तआला की तरफ से ना रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से। हैरानगी की बात यह है कि अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से कोई खबर ना होने के बावजूद कुछ महीनों को बा-बरकत माना जाता है और मनघडन्त रस्मों और ईबादत के लिए खास किया जाता है और कुछ के बारे में यह ख्याल किया जाता है कि उनमें कोई खुशी वाला काम, कारोबार का आगाज़, रिश्ता, शादी ब्याह या सफर वग़ैरह नहीं करना चाहिए, हैरानगी इस बात की नहीं है कि इस तरह के ख्यालात कहां से आये, यह तो मालूम है जिसका ज़िक्र इंशा अल्लाह अभी करना बाकी है, हैरानगी इस बात की है कि जो बातें किसी सबूत और सच्ची दलील के बग़ैर कानों, दिलों और दिमागों में डाली जाती है उन्हें फौरन कुबुल कर लिया जाता है। लेकिन जो बात अल्लाह और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से बातयी जाती हे पूरी तहक़ीक के साथ सच्ची और साबितशुदा हवालाजात के साथ बताई जाती है उसे मानते हुए तरह-तरह के बहाने, मन्तक़ ओ फलसफा, दिल ओ अक्ल की कसौटियां इस्तेमाल कर के राहे फरार तलाश करने की भरपूर कोशिश की जाती है। जैसा कि अल्लामा इक़बाल कहते है:
हक़ीक़त खुराफात में खो गई
यह उम्मत रवायात में खो गई।
इन ही खुराफात में से माहे सफर को मन्हूस जानना है, पहले तो यह सुन लिजिए कि अल्लाह तआला ने किसी चीज़ को मन्हूस नहीं बनाया, हां यह अल्लाह तआला की हिक्मत और मर्ज़ी है कि वह किसी चीज़ में किसी के लिए बरकत दे और किसी के लिए ना दे। आईये अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक फरमान आपको सुना दूं जो हमारे इस मौज़ु के लिए फैसला कुन है।
अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने नहुसत का ज़िक्र किया गया तो आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया, “गर नहुसत किसी चीज़ में होती तो उन तीन चीज़ में होती औरत, घर और घोड़ा।”
सहीह मुस्लिम, हदीस नं. 5529.
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह फरमान कि “अगर नहुसत किसी चीज़ में होती” साफ बयान फरमाना है कि कोई चीज़ मन्हुस नहीं होती और यह बात भी हर कोई समझता है कि जब कोई चीज़ कहा जाएगा तो उसमें माद्दी और ग़ैर माद्दी हर चीज़ शामिल होगी यानी वक्त और उसके पैमाने भी शामिल होंगे, लिहाज़ा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस फरमान ए मुबारक से यह बात बिल्कुल वाज़ेह हो गई कि नहुसत किसी चीज़ का ज़ाती जुज़ नहीं होती, अल्लाह तआला जिस चीज़ को जिसके लिए चाहे बरकत वाला बनाये और जिस चीज़ के लिए चाहे बे-बरकती वाला बनाये। यह सब अल्लाह की हिक्मत और मस्लिहत से होता है ना कि किसी चीज़ की अपनी सिफात से।
देख लिजिए कोई दो शख्स जो एक ही मर्ज़ का शिकार हो एक ही दवा इस्तेमाल करते है एक को शिफा हो जाती है और दुसरे को उसी दवा से काई आराम नहीं आता बल्कि बाज़ औक़ात मर्ज़ बढ़ जाता है। कई लोग एक ही जगह में एक जैसे कारोबार करते है किसी को फायदा होता है किसी को नुकसान तो कोई दर्मियानी हालत में होता है कई लोग एक ही जैसी सवारी इस्तेमाल करते है किसी का सफर ख़ैर ओ आफियत से तमाम होता है और किसी का नहीं। इसी तरह हर एक चीज़ का मामला है यहां यह बात भी अच्छी तरह से ज़हन-नशीन करनी है कि बरकत और इज़ाफे में बहुत फर्क़ होता है। किसी के लिए किसी चीज़ में इज़ाफा होना या किसी के पास कोई चीज़ ज़्यादा होना इस बात की दलील नहीं होता कि उसे बरक़त दी गई है उमुमन देखने में आता है कि काफिरों और बदकारों को मुसलमानों और नेक लोगों निस्बत माल और दौलत, औलाद, हुकुमत और दुनियावी ताक़त वग़ैराह ज़्यादा मिलती है तो इसका यह मतलब नहीं होता कि उन्हें बरकत दी गई है बल्कि यह अल्लाह तआला की तरफ से उनपर आखिरत में मज़ीद अज़ाब तैयार करने का सामान होता है कि लो और खुब आखिरत का अज़ाब कमाओं। सफर के महीने की कोई फज़ीलत ना तो कुरआन और सुन्नत से मिलती है और ना ही कोई ऐसी बात जिसकी वजह से इसको बे-बरकत या बुरा समझा जाए।
इस्लाम के पहले अरब के काफिर इस महीने को मन्हुस और बाइस ए नहुसत समझते थे और समझते थे कि सफर एक कीड़ा या सांप है जो पेट में होता और जिसके पेट में होता है उसको क़त्ल कर देता है और दुसरों के पेट में भी मुन्तक़िल हो जाता है, यानी छूत की बिमारी की तरह इसके जरासिम भी मुन्तक़िल होते रहते है। लेकिन रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मन्दरजा बाला इन सब और इन जैसे दुसरे अक़ीदों को ग़लत क़रार फरमाया,
अबु हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “ना कोई छूत की बिमारी है, ना हमा है, ना नहुसत है, ना सफर (काई बिमारी या नहुसत वाला महीना है और ना कोई इसकी किसी महीने के साथ तब्दिली है)।”
सहीह मुस्लिम, हदीस नं. 2220.
अल्फाज़ के कुछ फर्क़ के साथ यह हदीस दिग़र सहाबा से भी रिवायत की गई है, अरब सफर के महीने के बारे में मन्हूस होने का अक़ीदा रखते थे अफसोस के इसी क़िस्म के ख्यालात आज भी मुसलमानों में पाये जाते है और वह अपने कई काम इस महीने में नहीं करते, आपने देखा कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस महीने के बारे में पाये जाने वाले हर ग़लत अक़ीदे को एक हुर्फ़ में बंद कर के मुस्तरद फरमा दिया। साल के दिग़र महीनों के तरह इस महीने की तारिख में भी हमें कई अच्छे काम मिलते है जो अल्लाह तआला की मस्लिहत से उसके बंदों ने किए मसलन - हिजरत के बाद जिहाद की आयात अल्लाह तआला ने इसी महीने में नाज़िल फरमाई, और रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने अपने रब के हुक्म पर अमल करते हुए पहला ग़ज़वा इस महीने में किया जिसे “गज़वा अल-अबवा” भी कहा जाता है। और “वद्दान” भी ईमान वालों की वालिदा मोहतरमा खदिजा बिन्त खुवयलिद रज़िअल्लाहु तआला अन्हां से रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शादी मुबारक भी इस महीने में हुई। ख़ैबर की फतह इसी महीने में हुई।
यह सब जानने के बाद भला कौन ऐसा मुसलमान होगा जो इस महीने को या किसी भी महीने को मन्हूस जाने ? और कोई नेक काम करने से खुद को रोके, अल्लाह तआला हम सबको हिदायत दे और उसपर अमल करते हुए हमारा खात्मा फरमाये। अल्लाह तआला इन मुख्तसर मालुमात को पढ़ने वालों को हिदायत का सबब बनाये और मेरी यह कोशिश क़ुबूल फरमाये और हम सबके लिए आखिरत में आसानी ओर मग़फिरत का सबब बनाए।आमीन ।
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