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अल्हम्दुलिल्लाह..
इमामत की शरत रसूलुल्लाह ने ये बताया है:
۩ अबू मसूद अल अंसारी र.अ. रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया,
'लोगो की इमामत वो कराए जैसे अल्लाह की किताब (कुरान मजीद) का सबसे ज्यादा इल्म हो और अगर वो सब इस में बराबर हो तो फिर सुन्नत का सब से ज्यादा जाने वाला शख्स इमामत करवाएं, अगर वो सुन्नत (के इल्म) में भी बराबर हो 'हो तो वो जिसने उन सब की निस्बत पहले हिजरत की हो, अगर वो हिजरत में बराबर हो तो वो जो इस्लाम कुबूल करने में सबकात रखता हो।'
सही मुस्लिम, किताब अल मसजिद (५), हदीस- १५३२।
क्या हदीस से साबित हुआ कि इमामत के लिए सबसे बड़ी चीज़ कुरान का इल्म है। और इस इल्म से मुराद ये नहीं है कि कुरान को कितना ज्यादा खुबसूरती से पढ़ा जा रहा है बल्कि इसे मुराद कुरान का सबसे ज्यादा याद होना है। इस की दलील हमें इस हदीस से मिलती है:
۩ अम्र बिन सलामा र.अ. रिवायत करते हैं,
'जब मक्का फतह हो गया तो हर कौम ने इस्लाम लाने में पहल की और मेरे वालिद ने भी मेरी कौम के इस्लाम में जल्दी की। फिर जब (मदीना) से वापस आये तो कहा के माई अल्लाह की कसम एक सच्चे नबी के पास से आ रहा हूँ। उनको फरमाया है कि फूला नमाज इस तरह फूला वक्त पढ़ा करो और जब नमाज का वक्त हो जाए तो तुम मुझसे कोई एक शख्स अजान दे और इमामत वो करे जिसे कुरान सब से ज्यादा याद हो।
लोगो ने अंदाज़ा किया कि क़ुरान सब से ज़्यादा याद है तो कोई शख़्स उन के क़बीले में मुझसे ज़्यादा क़ुरान याद करने वाला इन्हें नहीं मिला। क्योंकि मैंने आने जाने वाले सवालो से सुन कर कुरान मजीद याद कर लिया था। क्या आपने मुझे लोगो ने इमाम बनाया है। हालांकी उस वक्त मेरी उमर चाय (६) या सात (७) साल की थी और मेरे पास एक ही चादर थी।
जब माई (यूज़ लैपैइट कर) सजदा करता तो ऊपर हो जाती (और पीछे की जगह) खुल जाती। क्या क़बीला की एक औरत ने कहा तुम अपने क़ारी का जिस्म के पीछे का हिस्सा तो पहले छुपा दो। आख़िर उन्हें कपड़ा ख़रीदा और मेरे लिए एक कमीज़ बनानी, मैं जितना ख़ुश उस कमीज़ से हुआ उतना किसी और चीज़ से नहीं हुआ था।'
सहीह अल बुखारी, किताब अल मग़ाज़ी (६४), हदीस-४३०२।
एक बात का और ख़याल रखे कि इमामत करने वाले को दूसरी ज़रूरी चीज़ भी आती हो जैसे, क़ुरान का अल्फाज़ अच्छे से पढ़ना आता हो और नमाज़ पढ़ने और इसके शरईत का इल्म हो, यानी कौन सी दुआ कब पढ़ना है, नमाज़ में गलती हो जाए या वुज़ू टूट जाए तो क्या करना है, वगैराह।
۩ इब्न कुदामा r.h. कहते हैं,
'अगर उन दोनों ने एक शख़्स नमाज़ के अहकाम का ज़्यादा इल्म रखा, और दूसरे शख़्स नमाज़ के अलावा बाकी दूसरे मुआमलात में ज़्यादा इल्म रखा हो तो नमाज़ के अहकाम जान ने वाले को मुक़द्दम किया जाएगा।'
अल-मुगनी, २/१९.
हमारे मुआशरे में लोगो ने दधी को इमामत की शरत रख दी है, और ये सही नहीं है क्योंकि इसकी तालीम अल्लाह और उसके रसूल ने हमें नहीं दी है।
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