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रमज़ान के तीन अशरे और एक नेकी पार ७० नेकी | हदीस की तहकीक


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सवाल

नीचे दी गई हदीस जो के सलमान फ़ारसी र.ए. से मारवी है, इसकी सेहत कैसी है?

नबी ﷺ ने हमें शाबान के आखिरी दिन खुतबा इरशाद फरमाया, जिस में ये फरमाया, 'लोगो तुम पर अज़मत और बरकत वाला महीना नज़दीक आ रहा है, ऐसा महीना जिस में एक रात ऐसी है जो हज़ार महीनों से बेहतर है, इसके रोज़े अल्लाह ताला ने फ़र्ज़ करार दिया है और इस रात का क़ियाम नवाफ़िल है, जिसने भी इस माहीने में (कोई) नेकी की वो ऐसे है जिस तरह आम दिनों में फ़रीज़ा अदा किया जाए, और जिसने रमज़ान में फ़र्ज़ अदा किया गोया के उसने रमज़ान के इलावा सत्तार फ़र्ज़ अदा किए, ये ऐसा महीना है जिस का अव्वल रहमत और दरमियान मगफिरत और आखिरी हिस्सा जहन्नम से आज़ादी है।'

जवाब

अल्हम्दुलिल्लाह..

क्या हदीस को इमाम इब्न खुजैमा ने अपनी किताब 'सहीह इब्न खुजैमा ३/१९१, हदीस- १८८७' में नकल किया है। और अन्होने साथ में लिखा है, 'अगर ये रिवायत सही है'।

और जिन्होनें इस किताब से अपनी किताब में इस हदीस को नक़ल किया, उन में से कुछ किताबों के मुसन्निफ़ जैसे मुंज़िरी [अल तरग़ीब वल तरहीब (२/९५)] से 'अगर' अल्फ़ाज़ छूट गया था। तो उनको लगा कि इमाम इब्न खुजैमा ने फरमाया है कि 'ये रिवायत सही है', जब असल में उन्हें ऐसा कुछ नहीं फरमाया।

ये रिवायत दूसरी किताबो में भी मौजुद है जिनका ये नाम है:

• इमाम बैहाकी की शुआब अल-ईमान (७/२१६)

• फ़ज़ैल अल-अवकात, पी. १४६, नहीं. ३७

• अबुल-शेख इब्न हिब्बान ने किताब अल सवाब में

• साआती ने फत अल-रब्बानी में (९/२३३)

• इमाम सुयुति ने दुर्र अल-मंसूर में, और उन्हें कहा कि इसे अकीली ने रिवायत किया है और उन्हें  इसे ज़ैफ़ करार दिया है

• इस्बहानी ने अल-तरग़ीब में

• अल-मुनक़्क़ी ने कन्ज़ अल उम्माल (८/४७७) मुझे।

सारे लोगो ने सईद इब्न मुसैयब से रिवायत किया है जिन्होनें सलमान फ़ारसी से रिवायत किया है। इसकी सनद दो (२) वजह से ज़ैफ़ है:

१. इस सनद में इन्क़िता (कथावाचकों की शृंखला को तोड़ना) है क्योंकि सईद बिन मुसय्यब का सलमान फ़ारसी र.अ. से समा साबित नहीं है.

२. इसकी सनद में एक रावी है जिसका नाम 'अली इब्न ज़ैद इब्न जादान' है, जिसके बारे में इब्न साद कहते हैं, 'इस (रावी) में कमी है और इस रावी को दलील नहीं बनाया जा सकता।' इस रावी को इमाम अहमद, इब्न माईन, इमाम नसाई, इमाम इब्न खुजैमा, अल जवज्जानी और दूसरे ने ज़ैफ़ करार दिया है, जैसा कि सियार आलम अल-नुबाला', ५/२०७ में कहा गया है।

अबू हातिम अल-रज़ी ने इस हदीस को मुनकर (ज़ैफ़ की एक क़िस्म) करार दिया है। अल अयनी ने उमदत अल-क़ारी', ९/२० में भी यही कहा है और अल-अल्बानी ने सिलसिलेत अल-अहादीथ अल-ज़ैफ़ा वाल-मौज़ुआह, जिल्द। २/२६२, हदीस-८७१. मैं भी यही कहता हूँ।

तो इन दलीलों से वाज़ेह हुआ कि हमारे मुहद्दिसिनो ने इस हदीस को क़ुबूल नहीं किया और अल्लाह बेहतर जानता है।

एक बात की वजह और ज़रूरी है कि जैसा इस ज़ैफ़ हदीस में कहा गया है कि १० दिन (एक अशरा) रहमत का होता है, दूसरा अशरा मगफिरत का और तीसरा जहन्नम की आग से नजात का। जब कि दूसरे सही हदीस से पता चलता है कि रमज़ान की तकसीम इस तरह से नहीं है बल्कि पूरा रमज़ान, पूरा महीना रहमत का है, पूरा महीना मगफिरत का है और पूरा महीना ही जहन्नम से नजात का है।

अल्लाह से दुआ है कि वो हमारी माह ए रमजान की इबादत को कुबूल करे और इस माहीन की बरकत से हमारी मगफिरत कर दे। आमीन.