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हज्ज ए अक्बर के मुताअल्लिक एक ग़लत फ़हमी


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अक्सर लोगों में यह बात पायी जाती है कि अगर हज्ज जुमआ के दिन आजाए तो उसका अज्र व सवाब बढ़ जाता है और इस हज्ज को हज्ज ए अक्बर कहा जाता है।

यह एक ऐसी बात है जिसकी हमें कोई दलील ना तो अल्लाह की किताब में मिलती है और ना ही रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की तालिमात में और ना ही सहाबा रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन के यहां, और ना ही एक लम्बे अर्से तक उनके साथ गुज़ारने वालों के यहां।

अल्लाह ने हज्ज का ज़िक्र किसी बड़े या छोटे यानी अज्ज ए अक्बर या अज्ज ए असग़र की तफरीक़ (फर्क) के बग़ैर ही फरमाया है। यानी इसको हज्ज ए अक्बर ही फरमाया है जैसे कि

وَ أَذَانٌ مِّنَ اللّهِ وَرَسُولِهِ إِلَى النَّاسِ يَومَ الحَجِّ الأَكبَرِ

अल्लाह और उसके रसूल की तरफ से तमाम लोगों की तरफ हज्ज ए अक्बर की तरफ एैलान है।

(सुरह तौबा 9, आयत नं. 3)

सहीह अल बुखारी, मुस्लिम, तिर्मिज़ी और अबु दाऊद की हदीस के मुताबिक हज्ज ए अक्बर का दिन 10 ज़िल हिल्ला को कहा जाता है। और इसलिए कहा जाता है कि इस दिन हज्ज के सबसे ज़्यादा और अहम मनासिक अदा किये जाते है, अबु दाऊद की हदीस: 

हज़रत इब्ने उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा बयान करते है कि: “रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने जिस साल हज्ज किया उस हज्ज में आप यौमुन्नहर (कुरबानी) वाले दिन खड़े हुए और फरमाया: “यह कौनसा दिन है” ?
सहाबा ने अर्ज़ किया: कुरबानी का दिन।
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया यह हज्ज ए अक्बर का दिन है।

(अबु दाऊद, किताबुल मनासिक, हदीस 1947)

रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने यह बताया कि कुरबानी करने के दिनों में से पहला दिन यानी ईद उल अज़हा वाले दिन हज्ज ए अक्बर है। जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि जिस साल रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने हज्ज अदा फरमाया तो उस हज्ज में कुरबानी वाले दिन (10 जिलहिल्ला) जमरात (शैतानों को पत्थर मारने के मुक़ामात) के दर्मियान खड़े होकर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने इर्शाद फरमाया:

ہذا یَومُ الحَجِّ الأَکبَرِ

यह आज का दिन ही हज्ज ए अक्बर वाला दिन है। और नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया शुरू कर दिया

“ऐ अल्लाह गवाह रहना।” और लोगों को अल विदा किया तो लोगों ने कहा यह हज्ज उल विदा है (यानी रूख्सती वाला आखरी हज्ज है।) 

(सहीह अल बुखारी, हदीस 1655, किताब उल हज्ज बाब 131)

हो सकता है कि कोई यह ख्याल करे कि इस आयत और हदीस में यह कही नहीं कि उस दिन जुमआ ना था, तो इसका जवाब यह है कि अगर उस दिन जुमआ होता, या जुमआ के दिन को हज्ज ए अक्बर समझा जाना मक़सूद होता तो इसके बारे में सहाबा रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन की तरफ से हमें कोई सहीह साबित शुदा खबर मिलती। जबकि ऐसा नहीं है, और जो खबर वहां से मिलती है वह इस मंदर्जे़ बिल हदीस के मुताबिक़ है। जैसा अबु हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि 

بَعَثَنِي أبو بَكرٍ رضي الله عنه فِيمَن يُؤَذِّنُ يوم النَّحرِ بِمِنًى لَا يَحُجُّ بَعدَ العَامِ مُشرِكٌ ولا يَطُوفُ بِالبَيتِ عُريَانٌ وَيَومُ الحَجِّ الأَكبَرِ يَومُ النَّحرِ وَإِنَّمَا قِيلَ الأَكبَرُ من أَجلِ قَولِ الناس الحَجُّ الأَصغَر

अबु बकर सिद्दीक रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने मुझे यौमुन्नहर (यानी 10 जिल हिज्ज कुरबानी करने वाले दिन) इन लोगों के साथ भेजा जो मिना में यह एैलान करे कि इस साल के बाद कोई मुश्रिक हज्ज ना करेगा और ना ही कोई नंगा होकर क़ाबे का तवाफ करेगा। और हज्ज ए अक्बर यही यौमुन्नहर (यानी कुरबानी करने वाला दिन) है। और इसको अक्बर इसलिए कहा गया है कि लोग हज्ज ए असग़र कहा करते थे। 

(सहीह अल बुखारी, हदीस 3002, सहीह मुस्लिम 1347, किताबुल हज्ज, बाब 78)

उस ज़माने में आवाम उमराह को हज्ज ए असगर कहा करते थे। इसलिए भी उमराह से मुमताज़ करने के लिए हज्ज को हज्ज ए अक्बर कहा गया है, जैसा कि ईमाम तिमिर्ज़ी रहमतुल्लाह अलैय इस हदीस के तहत इस बात का इज़हार करते है। आवाम में जो बात मशहूर है कि जो हज्ज जुमआ वाले दिन आये वह हज्ज ए अक्बर है। यह लोगों की फैलाई हुई बात है, कुरआन व हदीस और सहाबा से कही साबित नहीं। इसलिए इससे बचना चाहिए।

इसके आलावा कुतुबुत्तफासीर और हदीस में सहाबा रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम अजमईन, ताबईन, ताबे ताबईन के बहुत से अक़वाल मुयस्सर है जो यही साबित करते है कि यौमुन्नहर यानी कुरबानी वाले दिन, ईद के दिन को ही हज्ज ए अक्बर कहा जाता था, समझा जाता था। इसके आलावा कोई और हज्ज ए अक्बर ना था। और जो कुछ उस वक्त दीन ना था वह बाद में किसी सुरत दीन नहीं हो सकता क्योंकि उस वक्त अल्लाह ने दीन मुकम्मल फरमा दिया था। जिसमें किसी भी तब्दीली की कोई भी गुंजाईश नहीं।

अल्लाह हमें दीन की सहीह समझ अता करे। आमीन।