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अलहमदुल्लिाह
हमारे मुआशरे में कुछ घरों के बाहर या फिर घरों के अन्दर यह देखा जाता है कि “अल्लाह-मुहम्मद” नाम का नक्श बना हुआ होता है। और बाज़ औकात कपड़े में भी इसका डिज़ाईन बना हुआ होता है। इस तरह का नक्श बनाना ठिक नहीं है क्योंकि इसमें शिर्क की बू (smell) आती है। अगर एक ग़ैर मुस्लिम इसे देखेगा तो उसे तौहीद का अहसास हो ना हो लेकिन शिर्क का अहसास ज़रूर हो जाएगा।
हमारी दलील यह है:
अदी बिन हातिम रिवायत करते है कि एक शख्स ने रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने खुत्बा दिया और (इसमें) कहा: “जो अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करता है उसने रूश्द और हिदायत पा ली और जो इन दोनों की नाफरमानी करता है वह भटक गया।”
इसपर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “कितना बुरा खतीब है तू, (फिक़रे के पहले हिस्से की तरह) यूं कहो, जिसनेे अल्लाह की और उसके रसूल की नाफरमानी की (वह गुमराह हुआ)।”
इब्ने नुमैर कहते है: बल्कि वह गुमराह हो गया।
सहीह मुस्लिम, किताब अल जुमाह (7), हदीस 2010.
इस हदीस में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खतीब को सिर्फ इसलिए डांटा क्योंकि उन्होंने अल्लाह और रसूल कहने के बजाए “दोनों” अल्फाज़ कह दिया था, तो अगर आज रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मौजुद होते तो वह कैसे इसकी इजाज़त दे देते कि कोई अल्लाह-मुहम्मद का नक्श बना कर इन दोनों नामों को एक साथ एक मुक़ाम पर रख दे।
कुछ लोग एक एैतराज़ कर सकते है कि अल्लाह और मुहम्मद नाम एक साथ रख कर कोई रसूल को खुदा का दर्जा नहीं देता तो फिर यह क्यों गलत हुआ। तो इसका जवाब यह है कि अगर हम ग़ौर करे तो वह सहाबी (खतीब) “दोनों” का लफ्ज़ इस्तेमाल कर के रसूल को अल्लाह का दर्जा नहीं दे रहा था लेकिन इसके बावजुद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें इस चीज़ से मना फरमाया।
इसके बजाए वह नक्श लगाये जाए जिससे तौहीद की खुशबू आती हो और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान बयान होती हो जैसे ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूल अल्लाह, वग़ैरह।
और अल्लाह सबसे बहतर जानता है।
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अल्लाह से दुआ है कि वह हमें सिधी राह अता करे। आमीन।
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