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इमाम ग़ज़ाली फरमाते है,
‘अकलमंद आदमी पहले हक़ की माँ'अरफ़ात हासिल करता है, फिर किसी बात को देखता है, अगर वह सहीह है तो उसे तस्लीम कर लेता है चाहे उसके क़ायल हक़ परस्त हो या गुमराह, बल्कि बाज़ दफा वह गुमराहों की बातों में से अच्छी बातों को अलग करने की कोशिश करता है क्यों के उसे मालूम है के मिट्टी से सोना भी निकलता है।’
मुखाशिफतुल कुलूब, 561।
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