اقرأ باسم ربك الذي خلق

जब शफाअत हक़ है तो अमल ज़रूरी क्यों?


ro  -
सवाल: जब रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारी शफाअत करेंगे क़यामत के दिन तो फिर हमें अमल करने की ज़रूरत क्यों है 

जवाब:

अलहम्दुलिल्लाह..

रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शफाअत हक़ है।

۩ हज़रत अबु हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु कहते है रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया, हर नबी के लिए एक दुआ है जो ज़रूर कबूल होती है तमाम अम्बियां ने वह दुआ दुनिया में ही मांग ली, लेकिन मैंने अपनी दुआ क़यामत के दिन अपनी उम्मत की शफाअत के लिए महफूज़ कर रखी है, मेरी शफाअत इंशा अल्लाह हर उस शख्स के लिए होगी जो इस हाल में मरा कि उसने किसी को अल्लाह के साथ शरीक नहीं किया।

सहीह मुस्लिम, किताब अल ईमान ﴾1﴿, हदीस 491.

शफाअत हक़ हे लेकिन शफाअत अल्लाह की इजाज़त से होगी बिना उसकी इजाज़त के नहीं। अल्लाह तआला फरमाते हैः

۩ बिला शुबा तुम्हारा रब अल्लाह ही है जिसने आसमानों और ज़मीन को छः (6) रोज़ में पैदा कर दिया फिर अर्श पर क़ायम हुआ, वह हर काम की तदबीर करता है, उसकी इजाज़त के बग़ैर कोई उसके पास सिफारिश करने वाला नहीं, ऐसा अल्लाह तुम्हारा रब है, सो तुम उसकी ईबादत करों, क्या तुम फिर भी नसीहत नहीं पकड़ते।

सुरह युनुस (10), आयत-3.

और रसूलअल्लाह ﷺ ने इस उसूल को और वाज़ेह करके इर्शाद फरमाया हैः

۩ अबु हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने कहा जब (सुरह अल शुअरा की) यह आयत अल्लाह तआला ने उतारी “और अपने नज़दीक नाते वालों को अल्लाह के अज़ाब से डराव” तो रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया, ऐ कुरैश के लोगों! या ऐसा ही कोई और कलिमा तुम लोग अपनी अपनी जानों को (नेक आमाल के बदले) मोल ले लो (बचा लो), मैं अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ काम नहीं आउंगा (यानी उस अल्लाह की मर्ज़ी के खिलाफ मैं कुछ नहीं कर सकुंगा) अब्द मनाफ के बेटों! मैं अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ काम नहीं आउंगा। अब्बास अब्दुल मुत्तलिब के बेटे! मैं अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ काम नहीं आउंगा। सफिया मेरी फूफी! अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ काम नहीं आउंगा। ऐ फातिमा, मेरी बेटी तू चाहे मेरा कोई भी माल मांग ले लेकिन अल्लाह के सामने तेरे कुछ काम नहीं आ सकुंगा।

सहीह अल बुखारी, हदीस नं. 2753.

तो शफाअत अल्लाह की इजाज़त से होगी बिना उसकी इजाज़त के नहीं। और अगर अल्लाह ने पकड़ लिया तो फिर कोई नहीं छुड़ा सकता उसकी पकड़ से क्योंकि अल्लाह की पकड़ बहुत सख्त है।सीरत ए नबवी से हमें इसकी बहुत सी मिसालें मिलती है, एक मिसाल यह हैः

۩ हज़रत अबु हुरैरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने बयान किया कि हम नबी ﷺ के साथ खैबर की लड़ाई के लिए निकले। इस लड़ाई में हमें सोना, चांदी ग़नीमत में नहीं मिला था बल्कि दुसरे अमवाल, कपड़े और सामान मिला था। फिर बनी अद्-दुबैब के एक शख्स रिफाअ बिन ज़ैद नामी ने रसूलअल्लाह ﷺ को एक गुलाम हदिया (तोहफा) में दिया, गुलाम का नाम मिदअम था।

फिर रसूलअल्लाह ﷺ वादी-ए-क़ुरा की तरफ मुतवज्जा हुए और जब आप ﷺ वादी-ए-क़ुरा में पहुंच गए तो मिदअम को जबकि वह आप ﷺ का किजावा दुरूस्त कर रहा था, एक अंजान तीर आकर लगा और उनकी मौत हो गई।

लोगों ने कहा कि जन्नत उसे मुबारक हो, लेकिन रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया कि हरगिज़ नहीं! उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है, वह कम्बल जो इसने तक़सीम से पहले खैबर के माल-ए-ग़नीमत में से चुरा लिया था, वह इसपर आग का अंगारा बन कर जल रहा है।

जब लोगों ने यह बात सुनी तो एक शख्स चप्पल का तस्मा या दो (2) तस्में लेकर आप ﷺ की खिदमत में हाज़िर हुआ, (मतलब जो बिना इजाज़त लिया था वह वापस ले आया)। आप ﷺ ने फरमाया कि यह आग का तस्मा है या दो (2) तस्में आग के है।

सहीह अल बुखारी, हदीस नं. 6707.

इस हदीस से और वज़ाहत हुई कि जब अल्लाह ने रसूलअल्लाह ﷺ की खिदमत करने वाले सहाबी को नहीं बख्शा तो फिर हमारी और आपकी क्या हैसियत है, अगर अल्लाह पकड़ने पर आ गया तो? अल्लाह से डरे क्योंकि अल्लाह की पकड़ बहुत सख्त है।

हमारे मुआशरे में तो यह मशहूर है कि “खुदा का पकड़ा छुड़ाए मुहम्मद, मुहम्मद का पकड़ा छुड़ा ना सके कोई” हमें इस अशआर से अल्लाह की पनाह तलब करनी चाहिए और सोचना चाहिए कि क्या वाक़ई हम उसी रोशनी पर चल रहे है जो रोशनी अल्लाह ने हमें अपनी किताब में दी है, रसूलअल्लाह ﷺ ने हदीस में दी है...?

•٠•●●•٠•

अल्लाह से दुआ है कि वह हमें सिरात ए मुस्तक़ीम अता करे। आमीन.