ro - |
अल्लाह कुरआन मजीद में फरमाता है:
यह कहते है कि यहुद-ओ-नसारा बन जाओं तो हिदायत पाओगें।
(सुरह अल बकरा, आयत न. 135)
क्या तुम कहते हो कि इब्राहीम और ईस्माइल और इसहाक़ और याकूब (अलैहीस्सलाम) और उनकी औलाद यहुदी या नसरानी थे ?
(सुरह अल बकरा, आयत न. 140)
यही बात आज मुसलमानों को सोचनी चाहिए, मोहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम और सहाबा देवबंदी थे, या बरेलवी थे या अहले हदीस थे ? इन तक्सीमों से ऊपर होने की ज़रूरत है हमें। किसी मसलक की पैरवी करना गलत नहीं है जबतक वह कुरआन और सुन्नत से match करता है लेकिन अपने आप को उससे identify करना और उस मसलक को मुकद्दम रखना दीन पर , और उस मसलक के लिए ही मेहनत और मशक्कत ओर भाग-दौड़ करना उसी के लिए, यह चीज़ बिल्कुल इस्लाम की तालिमात के खिलाफ है जो कि अल्लाह के दीन ने हमें सिखाई है।
۩ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फरमाया: मेरी उम्मत 73 फिर्कों में बट जाएगी और वह सब जहन्नम में जायेंगें सिवाए एक के। सहाबा ने पूछा वह कौनसा फिर्का होगा ? फिर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने जवाब दिया वह, “वह एक रास्ता होगा जिस पर हम और हमारे सहाबा चले।”
(तिर्मिज़ी हदीस 171)
۩ अल्लाह पाक जवाब देता है:
इब्राहीम तो ना यहुदी थे और ना नसरानी थे बल्कि वह तो यक तरफा (सिर्फ) मुसलमान थे वह मुश्रिक भी ना थे।
(सुरह आले इमराम आयत न. 67)
۩ ... उसी अल्लाह ने तुम्हारा नाम मुसलमान रखा है इस कुरआन से पहले ओर इसमें भी (22ः78)
क्या अल्लाह ने जो हमें नाम दिया है उससे बेहतर कोई और नाम हो सकता है ???
۩अल्लाह पाक कुरआन ए मजीद में फरमाता है:
सब मिलकर अल्लाह की (हिदायत की) रस्सी को मज़बुती से थाम लो और आपस में (फिर्कों में) ना बटों।
(सुरह आले इमरान आयत न. 103)
۩ बेशक जिन लोगों ने अपने दीन को बांटा और फिर्का-फिर्का बन गये, आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का उस से कोई ताल्लुक नहीं बस उन का मुआमला अल्लाह तआला के हवाले है, फिर इनको इनका किया हुआ जतला देगा।
(सुरह अनआम 6, आयत न. 159)
۩ उन लोगों की तरह ना होना जिन्होंने अल्लाह के साथ औरों को शरीक़ किया और ना ही उन लोगों की तरह जिन्होंने अपने दीन को बांट दिया और फिर्के-फिर्कें हो गये, हर गिरोह उस चीज़ पर खुश है जो उनके पास है (कि बस वही लोग हक़ पर है) ।
(सुरह रूम 30, आयत न. 31,32)
अल्लाह हमें फिर्का परस्ती से ऊपर उठने की तौफिक़ इनायत फरमाये। आमीन ।
Post a Comment