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असल सलफ़ियत क्या है ?


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शैख इब्ने उसैमीन फरमाते है,

“सलफ़ियत हक़ीक़त में मन्हज ए नबवी व मन्हज ए सहाबा की इताअत का नाम है, क्योंकि वही हमारे सलफ़ है और हमसे आगे है चुनांचे उनके नक्श ए कदम पर चलना ही “सलफ़ियत” कहलाता है।

जबकि “सलफ़ियत” को कोई इंसान अपना खास मन्हज बना कर इस मन्हज की मुख़ालफत करने वाले मुसलमानों को गुमराह करार दे, चाहे वह हक़ पर ही क्यों ना हो, और सलफ़ियत को गिरौह-बंदी व फिरक़ा वारियत का ज़रिया बनाना, बिला शुबाह यह अमल सलफ़ियत के खिलाफ है, क्योंकि सलफ़ सालिहीन सब के सब सुन्नत ए रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर इत्तेफाक व इत्तेहाद के साथ क़ायम रहने की दावत देते आये है, वह (सलफ़) समझ और तशरीह के इख्तलाफ़ की वजह से किसी को गुमराह नहीं कहते थे, हां अलबत्ता अक़ाइद के बारे में सलफ़ सालिहीन मुख्तलिफ राय रखने वाले को गुमराह कहते थे, जबकि फिक़ही और अमली मसाइल में सलफ़ सालिहीन नरमी बरतते थे।

लेकिन हमारे इस दौर में कुछ लोग जिन्होंने सलफ़ियत का रास्ता अपनाया है उन लोगों ने हर उस शख्स को गुमराह कहना शुरू कर दिया जो उनसे इख्तिलाफ करता है यहां तक कि अगर वह शख्स सहीह हो, और कुछ लोगों ने हिज़्ब का रास्ता अपनाया है जिस तरह से दुसरे गिरौह ने अपनाया था जो अपने आप को मज़हब ए इस्लाम से होने का दावा करते है। यह कुछ ऐसा है जो ना-पसन्दिदा है और जिसकी मंज़ूरी नहीं दी जा सकती, और उन लोगों से यह कहना चाहिये कि सलफ़ अस् सालेह के तरीके को देखों, वह क्या किया करते थे? उनके तरीके को देखों और कैसे वह खुले दिल के थे जब इख्तिलाफ की शुरूआत आती थी जिसमें इज्तिहाद जायज़ है (और इख्तिलाफ काबिले कुबुल है)। वह बड़े मसाईल में भी इख्तिलाफ करते थे, ईमान और अमल के मसाईल में। आप को कुछ चीज़े मिलेंगी, जैसे, रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अल्लाह को देखने पर इन्कार करना जबकि दुसरों ने कहा कि उन्होंने देखा है। आपने कुछ को यह कहते हुए देखा होगा कि क़यामत के दिन जो चीज़ तोली जायेगी वह है आमाल जबकि दुसरे लोग कहते थे कि वह जो आमाल की किताब है जो तौली जायेगी। आप उन्हें देखेंगे कि वह फिक़ह के मुआमलों में भी काफि हद तक इख्तिलाफ करते थे, जैसे निकाह, विरासत का हिस्सा, खरीद और फरोख्त और दुसरे मुआमलों में। लेकिन इसके बावजुद उन्होंने एक दुसरे को गुमराह नहीं कहा।

सलफ़ियत एक खास जमाअत के तौर पर जिसकी अलग खुसुसियात हो जिसमें लोग इन लोगों के सिवा सबको गुमराह कहे, इन लोगों का सलफ़ियत से कुछ भी लेना-देना नहीं है। जहां तक कि सलफ़ियत जिसका मतलब सलफ़ की पैरवी करना ईमान में, कलिमात और आमाल में, इत्तिहाद, मुताबक़त और शफ्कत और मुहब्बत की तरफ बुलाना जैसा कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “मोमिन की मिसाल एक जिस्म में मुहब्बत, रहमत और शफ्कत की तरह है, जब कोई एक हिस्से में तकलीफ होती है तो फिर बाकी हिस्सा भी उसके साथ जागता है और बुखार में शामिल हो जाता है - यह असल सलफ़ियत है।” 

ख़तम

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लिक़ाअत अल-बाद अल-मफ्तूह, 3/246.

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