रोमन |
अलहम्दुलिल्लाह
बेटी चाहे वह माँ या अपने वालिद की वारिस हो, उसके हिस्से की कई एक हालतें हैं जिन्हें नीचे बयान किया गया है,
1. जब लड़की अकेली हो, यानी इसकी कोई बहन या भाई [यानी मरने वाले की आगे की पीढ़ी (generation)] ना हो तो लड़की को विरासत का आधा मिलेगा, अल्लाह तआला का फरमान है,
“और लड़की अकेली हो तो उसके लिये आधा है।”
सुरह निसा (4), आयत-11.
2. जब एक से ज़्यादा लड़कीयां हो तो (यानी दो या दो से ज़्यादा) और फ़ौत-शुदा शख़्स का कोई बेटा ना हो तो बेटियों को दो-तिहाई (2/3) मिलेगा, अल्लाह तआला का फरमान है,
“अगर औरतें दो से ज़्यादा है तो उसके लिये दो-तिहाई है उस माल से जो मय्यत छोड़ गया है।”
सुरह निसा(4), आयत-11.
3. और जब लड़की के साथ फ़ौत-शुदा शख़्स का बेटा भी वारिस हो (एक या एक से ज़्यादा) तो हर वारिस का मुक़र्रर हिस्सा अदा कर के (नोट-1) बाक़ी माल इन दोनों (लड़के-लड़की) को मिलेगा, और लड़की का हिस्सा इसके भाई से आधा होगा (मर्द को दो औरतों के बराबर के हिसाब से) चाहे दो या दो से ज़्यादा बहन-भाई हो तो लड़के को दो लड़कीयों के बराबर हिस्सा मिलेगा, अल्लाह तआला का फरमान है,
“अल्लाह तआला तुम्हें तुम्हारी औलाद के मुताअल्लिक़ वसीयत करता है, लड़के के लिये दो (2) लड़कीयों के बराबर है।”
सुरह निसा (4), आयत-11.
और यह हिस्सा अल्लाह तआला की जानिब से तक़सीम करदा है लिहाज़ा किसी शख़्स के लिये भी इसमें कुछ तब्दीली करना जायज़ नहीं, और ना ही किसी के लिये जायज़ है कि वह किसी वारिस को विरासत से महरूम करे और ना किसी के लिये यह जायज़ है कि वह किसी ऐसे शख्स को विरासत में दाखिल करे जो उसके वारिस नहीं, और ना कोई किसी वारिस के मुक़र्रर करदा हिस्सा से कमी कर सकता है और ना ही इसके शरई हिस्से में ज़्यादती कर सकता है।
अल्लाह तआला हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अपनी रहमतें नाज़िल फारमाये।
स्त्रोत: Islamqa
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नोट 1ः यानी जो माल बटंवारे से पहले देना है, मिसाल के तौर पर अगर मय्यत पर किसी का कर्ज बाक़ी हो तो सबसे पहले वह कर्ज़ अदा किया जायेगा फिर बंटवारा किया जायेगा लड़का-लड़की में।
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