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1. वित्र का वक्त
2. वित्र क्या शुरू के वक़्त में पढ़ा जाए या आखिर के वक़्त में
3. वित्र की नियत
4. वित्र की रकाअत
5. तीन रकाअत वित्र पढ़ने का तरीका
6. पाँच (5) या सात रकाअत वित्र
7. नौ (9) रकाअत वित्र
8. ग्यारह (11) रकाअत वित्र
10. दुआ ए क़ुनूत
11. क्या वित्र की दुसरी दुआ “अल्लाहुम्मा नस्तइनुका” पढ़ सकते हैं?
12. दुआ ए क़ुनूत रूकुअ से पहले या रूकुअ के बाद में?
13. रूकुअ के बाद वाली रिवायतें
14. क्या दुआ ए क़ुनूत में हाथ उठाये जाये?
15. वित्र के बाद की दुआ
16. वित्र की क़ज़ा
वित्र की नमाज़ एक बेहतरीन इबादत है जिससे अल्लाह का क़ुर्ब हासिल होता है। उलमाओ में से कुछ (हनफ़ी) ने यह कहा है कि यह नमाज़ फर्ज़ है लेकिन सहीह अहकाम यही है कि यह सुन्नत ए मुअक्कदाह है।
1. वित्र का वक्त:
शेख मुहम्मद सालेह अल मुनज्जिद फरमाते है वित्र की नमाज़ का शुरू का वक्त तब होता है जब एक शख़्स इश़ा पढ़ चुका होता है अगर्चे इशा को मग़रिब के साथ ही क्यों ना पढ़ा गया हो मग़रिब के वक़्त। और इस नमाज़ का ख़तम होने का वक़्त फज्र से पहले है। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “अल्लाह ने तुम पर एक नमाज़ मुकर्रर की हे जो वित्र है, अल्लाह ने तुम पर यह नमाज़ इश़्ाा की नमाज़ और फज्र की शुरूआत के बीच मुकर्रर की है।”
तिर्मिज़ी, 425, अलबानी ने इसे सहीह कहा है।
2. वित्र क्या शुरू के वक़्त में पढ़ा जाए या आखिर के वक़्त में:
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “जो शख्स आखिर रात मं ना उठ सके तो वह शुरू रात में वित्र पढ़ ले और जो आखिर रात में उठ सके वह आखिर रात वित्र पढ़े क्योंकि रात की नमाज़ बेहतरीन है।”
सहीह मुस्लिम, हदीस - 755.
3. वित्र की नियत:
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “तमाम आमाल का दारोमदार नियत पर है।”
सहीह अल बुखारी, हदीस - 1.
वज़ाहत: किसी भी नमाज़ के लिये नियत करना ज़रूरी है लेकिन नमाज़ की नियत दिल से ना कि ज़बान से की जाती है।
4. वित्र की रकाअत:
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “वित्र हर मुसलमान का हक़ है। तो जो शख़्स पाँच रकाअत वित्र पढ़ना चाहे तो वह (पाँच) रकाअत पढ़े और जो तीन रकाअत पढ़ना चाहे तो (तीन रकाअत) पढ़े और जो एक रकाअत वित्र पढ़ना चाहे तो (एक रकाअत वित्र) पढ़े।”
सुनन अबु दाऊद, हदीस - 1422, अलबानी ने इसे सहीह कहा है।
नोट: रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “वित्र, आखिर रात मं एक रकाअत है।” सहीह मुस्लिम, हदीस - 752.
5. तीन रकाअत वित्र पढ़ने का तरीका:
तीन रकाअत वित्र पढ़ने के दो (2) तरीकें हैं:
पहला तरीका ‘
एक यह है कि तीन रकाअत के वित्र में किसी रकाअत में ना बैठे सिवाए आखरी रकाअत में, इसका मतलब दुसरी रकाअत में तशहुद के लिये बिना बैठे ही उठ जाना है या ऐसा कह सकते है कि दुसरी रकाअत के सज्दे के बाद ही उठ जाना है।
दुसरा तरीका:
दुसरा तरीका यह है कि 2 रकाअत पढ़ कर सलाम फेरना है और फिर एक रकाअत अलग से पढ़ना है।
इब्ने उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा रिवायत करते है कि वह दो रकाअत को एक रकाअत से तसलीम (सलाम) के साथ अलग किया करते थे, और वह फरमाते है कि ऐसा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम किया करते थे।
इब्ने हिब्बान 2435, इब्ने हजर ने अल फतह 2/482 में इसकी सनद को क़वी कहा है।
दोनों तरीकें जायज़ है हालांकि बेहतर दुसरा तरीका है। वज़ाहत के लिए यह आर्टिकल पढ़ें
6. पाँच या सात रकाअत वित्र
लेकिन अगर कोई पांच या सात रकाअत वित्र पढ़े तो वह मुसलसल होनी चाहिए और सिर्फ आखरी रकाअत में तशहुद पढ़े और फिर तसलीम (सलाम) कहे। क्योंकि:
हज़रत आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा रिवायत करती है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात को तेरह (13) रकाअत पढ़ा करते थे जिसमं वह पांच रकाअत वित्र पढ़ते थे जिसमें वह आखरी रकाअत के अलावा किसी रकाअत में ना बैठते थे।
मुस्लिम, 737.
उम्मे सलमा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा रिवायत करती हे कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पाँच या सात रकाअत वित्र पढ़ते थे और वह उसके बीच कोई सलाम या अलफाज़ से अलग नहीं करते थे।
अहमद, 6/209, अल निसाई, 1714, नववी ने इसकी इसनाद को जय्यद कहा है, अल-फतह अल-रब्बानी, 2/297
7. नौ (9) रकाअत वित्र
अगर नौ (9) रकाअत वित्र पढ़ना चाहे तो किसी भी रकाअत में ना बैठे सिवाए आठवी रकाअत में। आठवी रकाअत में बैठ कर सिर्फ तशहुद कहे और सलाम ना कहे और फिर वह खड़ा हो जाए। फिर 9 रकाअत में तशहुद और सलाम दोनोंपढ़ कर नमाज़ खतम करे।
ग्याराह (11) रकाअत वित्र
अगर वह 11 रकाअत वित्र पढ़ना चाहे तो हर दो रकाअत में सलाम फेरे और फिर आखिर में 1 रकाअत पढ़े।
9. वित्र को मग़रिब की तरह ना बनाना:
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि वित्र को तीन रकाअत मग़रिब की तरह ना बनाव।
अल-हाकिमए 1/403, अल-बयहक़ी, 3/31, अल-दारक़ुतनी, सफह 172, हाफिज़ इब्ने हजर ने फतहुल बारी (4/301) में शेखैन (बुखारी और मुस्लिम) की शर्त पर मुकम्मल कहा है।
और इस हदीस का जवाब दुसरी हदीस देती है कि वित्र को कैसे मग़रिब की तरह ना बनाया जाए।
हज़रत आयशा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा फरमाती है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीन रकाअत पढ़ते थे और वह आखरी रकाअत के अलावा किसी रकाअत में नहीं बैठते थे
अल निसाई, 3/234, बयहक़ी, 3/31,
इस हदीस से पता चला कि वित्र को कैसे मग़रिब की तरह ना बनाया जाए जिससे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मना फरमाया है।
10. दुआ ए क़ुनूत:
اللَّهُمَّ اهْدِنِي فِيمَنْ هَدَيْتَ وَعَافِنِي فِيمَنْ عَافَيْتَ وَتَوَلَّنِي فِيمَنْ تَوَلَّيْتَ وَبَارِكْ لِي فِيمَا أَعْطَيْتَ وَقِنِي شَرَّ مَا قَضَيْتَ إِنَّكَ تَقْضِي وَلاَ يُقْضَى عَلَيْكَ وَإِنَّهُ لاَ يَذِلُّ مَنْ وَالَيْتَ وَلاَ يَعِزُّ مَنْ عَادَيْتَ تَبَارَكْتَ رَبَّنَا وَتَعَالَيْتَ-
ऐ अल्लाह! मुझे हिदायत देकर उन लोगों में शामिल फरमा जिन्हें तुने रूश्दो हिदायत से नवाज़ा है और मुझे आफियत देकर उन लोगों में शामिल फरमा जिन्हें तुने आफियत बख़्शी है और जिन लोगों को तुने अपना दोस्त बनाया है उनमें मुझे भी शामिल करके आना दोस्त बनाले। जो कुछ तुने मुझे अता फरमाया है इसमें मेरे लिये बरकत डाल दे और जिस शर व बुराई का तुने फैसला फरमाया है उससे मुझे महफूज़ रख और बचा ले।
यक़ीनन तु ही फैसला सादिर फरमाता हे तेरे खिलाफ फैसला सादिर नहीं किया जा सकता और जिसका तु दोस्त बना वह कभी ज़लील व ख़्वार और रूसवा नहीं हो सकता और वह शख्स इज़्ज़त नहीं पा सकता जिसे तु दुश्मन कहे, ऐ अमारे रब! तु (बड़ा) ही बरकत वाला और बुलन्द व बाला है।
सुनन अबु दाऊद, किताबुस्सलात (8), हदीस- 1425, अलबानी ने इसे सहीह क़रार दिया है।
11. क्या वित्र की दुसरी दुआ “अल्लाहुम्मा नस्तइनुका” पढ़ सकते है?
उलमा कहते है कि जो अल्लाहुम्मा नस्तइनुका दुआ है, यह दुआ उमर रज़िअल्लाहु तआला अनहु से साबित है और यह पढ़ना जायज़ भी है, इसमें कोई हर्ज नहीं है लेकिन बेहतर है कि जो दुआ रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित है वह पढ़ी जाए
(दलील)
12. दुआ ए क़ुनूत रूकुअ से पहले या रूकुअ के बाद में?
इस मुआमले में उलमाओं में इख्तलाफ है। लेकिन अक्सर उलमाओं का यह कहना है कि दुआ ए क़ुनूत रूकुअ सें पहले और रूकुअ के बाद दोनों कर सकते हे और दोनों की इजाज़त है।
लेकिन बहतर राय यह है कि दुआ ए क़ुनूत रूकुअ से पहले किया जाए। यह इसलिए क्योंकि कोई भी सहीह/हसन रिवायत नहीं है जहां रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम या सहाबा रज़िअल्लाहु अन्हुम अजमईन दुआ ए क़ुनूत ए वित्र में रूकुअ के बाद क़ुनूत पढ़ा करते थे। बल्कि सहाबाओं से यह साबित है कि वह रूकुअ से पहले क़ुनूत ए वित्र पढ़ा करते थे:
आसिम अहवाल रिवायत करते हे कि मैंने अनस बिन मालिक से क़ुनूत के बारे में पूछा। अनस रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने जवाब दिया, “बिल्कुल (यह पढ़ा जाता था)।” मैंने पूछा कि रूकुअ से पहले या रूकुअ के बाद? अनस रज़िअल्लाहु तआला अनहु ने जवाब दिया: “रूकुअ से पहले”। मैंने कहा फुला ने कहा है कि आपने उसे बताया है कि रूकुअ के बाद है। अनस रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया, “उसने झुट कहा”। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ुनूत रूकुअ के बाद एक महीने के लिए पढ़ा था। अनस रज़िअल्लाहु तआला अन्हु फरमाते है जब मुश्रिकीन ने 70 सहाबा किराम को क़त्ल कर दिया तो “नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक माह (30 दिन) क़ुनूत फरमाए जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन (के क़ातिल मुश्रीकों) पर बद्दुआ करते रहे।”
सहीह अल बुखारी हदीस 1002, अबु अवानाह 2/285, दारमी 1/374, शराह मआनी अल आसाल तहावी 1/143, सुनन अल कुबरा 2/207, बयहक़ी और मुसनद अहमद 3/167
उबैय बिन काअब रज़िअल्लाहु तआला अन्इहु फरमाते है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीन वित्र पढ़ते और दुआ ए क़ुनूत रूकुअ से पहले पढ़ते थे।
इब्ने माजा नं. 1182, सुनन निसाई 3/235, नं. 1700, सुनन दारकुतनी 2/31, नं. 1644
मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा में भी यह रिवायत दर्ज है कि हज़रत अब्दुलल्लाह बिन मसऊद और सहाबा किराम रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम क़ुनूत ए वित्र रूकुअ से पहले पढ़ते थे।
इब्ने अबी शैबा, इसे इब्ने तुर्कमानी और हाफिज़ इब्ने हजर ने हसन कहा है।
13. रूकुअ केे बाद वाली रिवायतें:
वित्र में रूकुअ के बाद क़ुनूत की तमाम रिवायात ज़ईफ है और जो रिवायत सहीह है उनमें यह वाज़ेह नहीं है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रूकुअ के बाद वाला क़ुनूत, क़ुनूत वित्र था या क़ुनूत ए नाज़िला। इसलिए वित्र में क़ुनूत रूकुअ से पहले पढ़ा जाना चाहिए।
अल्लामा इब्ने हजर रहिमहुल्लाह सहीह अल बुखारी की तफसीर फतहुल बारी में कहते है, यह सारी रिवायतों की तजज़ीह करने के बाद हमें यह पता चलता है कि यह एक आम मामूल था कि दुआ ए क़ुनूत वित्र से पहले पढ़ा जाता था। ताहम किसी ख़ास सुरत में (जैसे मुसिबत के वक़्त) क़ुनूत रूकुअ के बाद पढ़ा जाता था।
फतहुलबारी जिल्द 1 पेज 219
14. क्या दुआ ए क़ुनूत में हाथ उठाये जाये?
दुआ ए क़ुनूत वित्र में हाथ उठाने के बारे में मरफुअ रिवायत नहीं है लेकिन हदीस की किताबों में बाज़ सहाबा इकराम रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम के आसार मिलते है। इस्लामी शरीअत में जब कोई बात रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ना मिले और सहाबा से वह अमल मिल जाये बिना किसी दुसरे सहाबा का ऐतराज़ किया तो उस अमल को अपनाने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन बेहतर यही होगा कि हाथ बांध के दुआ ए क़ुनूत पढ़ा जाए।
इब्ने मसऊद रज़िअल्लाहु तआला अन्हु कहते है कि वह वित्र में अपने हाथ उठाते थे और उसके बाद उसे नीचे कर लेते थे।
मुसनद अब्दुर्रज़ाक 4/325, सनद हसन.
15. वित्र के बाद की दुआ:
हजरत अबी बिन काअब रज़िअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वित्र से सलाम फेर कर तीन बर यह पढ़ते थे:
سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ
“सुब्हान-अल-मलिकिल क़ुद्दुस”
सुनन अबु दाऊद, हदीस 1430 सहीह
16. वित्र की क़ज़ा
अबु सईद अल खुद्री रज़िअल्लाहु तआला अन्हु रिवायत करते है कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया,
“अगर कोई शख्स वित्र पढ़े बग़ैर सो जाए या वित्र पढ़ना भूल जाए तो उसे जब याद आये या जागे तो वह वित्र पढ़ ले।”
सुनन अबु दाऊद, किताब अल वित्र 8 हदीस - 1431. ईमाम हाकिम और इमाम ज़हबी ने इसे सहीह क़रार दिया है।
अल्लाह हमें कसरत से वित्र अदा करने की तौफिक अता फरमाए।
आमीन
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